द्वापरयुग यानी महाभारत युद्ध का समय उन दिनों एक प्रथा थी, 'कोई भी काम शुरू करने से पहले छोटों की राय ली जाती थी।' ऐसा करने से छोटे भाईयों, कर्मचारियों का आत्मविश्वास बढ़ता था। जब राय ली जाती तो हानि-लाभ होने पर छोटे भाई और कर्मचारी कुछ बोल भी नहीं पाते थे। ऐसे में बड़ों का सम्मान बना रहता था।
महाभारत युद्ध की शुरुआत होने वाली थी। युधिष्ठिर अपने भाईयों से बोले, 'अब शांति की आशा नहीं रही। सेना सुसज्जित करो। युद्ध की तैयारी करो।'
इस तरह पांडवों की सेना को सात हिस्सों में बांट दिया गया। द्रुपद, विराट धृष्टद्युम्न, शिखंडी, सात्यकि, चेकितान, भीमसेन आदि सात महारथी इन सात दलों के नायक बनें। प्रश्न यह था सेना का सेनापति किसे बनाया जाए? सभी से राय ली गई।
युधिष्ठिर ने सबसे पहले सहदेव से पूछा सहदेव बोले, 'अज्ञातवास के समय हमने जिनके यहां आश्रय लिया था, जिनकी छत्रछाया में सुरक्षित रहते हुए हम अपना खोया हुआ राज्य फिर से हासिल कर सके हैं। वह विराटराज हमारे सेनापति बनने योग्य हैं।'
धर्मराज युधिष्ठिर ने फिर नकुल से पूछा तो नकुल ने कहा, 'मेरी नजर में पांचाल नरेश द्रुपद श्रेष्ठ हैं वह बुद्धिमानी में, वीरता में, बल विद्या में सर्वश्रेष्ठ हैं। वह हमारे सेना में सेनापति की भूमिका में बेहतर रहेगें। वह भीष्म पितामाह से युद्ध करने के भी योग्य हैं।'
अर्जुन ने कहा, 'जो जितेंद्रिय हैं, द्रोण का वध जिनका एकमात्र लक्ष्य है। इसलिए धृष्टद्युम्न ही हामारे सेनापति बनें।' भीम ने कहा, 'शिखंडी का जन्म ही भीष्म के प्राण लेने के लिए हुआ है। इसलिए में इनका नाम प्रस्तावित करता हूं।'
अंत में युधिष्ठिर ने भगवान श्रीकृष्ण से पूछा, 'आप क्या कहते हैं वासुदेव।' तब श्रीकृष्ण बोले, 'हम सभी ने जिन वीरों के नाम का प्रस्ताव दिया वह सभी सेनापति बनने योग्य हैं। लेकिन मुझे अर्जुन की राय ज्यादा बेहतर लगी।हमें धृष्टद्युम्न जी को संसार के इस यादगार महाभारत युद्ध के लिए पांडवों की सेना का सेनापति बनाना चाहिए।' इस तरह सभी ने धृष्टद्युम्न को सेनापति के पद के लिए चुना गया।
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