कुंभ मेले का इतिहास कम से कम 850 साल पुराना है। इस मेले के आयोजन को लेकर दो-तीन पौराणिक कथाएँ प्रचलित हैं जिनमें से सर्वाधिक मान्य कथा के अनुसार कुंभ की शुरुआत समुद्र मंथन के आदिकाल से ही हो गई थी।
इस कथा के अनुसार महर्षि दुर्वासा के शाप के कारण जब इंद्र और अन्य देवता कमजोर हो गए तो दैत्यों ने देवताओं पर आक्रमण कर उन्हें परास्त कर दिया। परास्त होने के बाद सभी देवता भगवान विष्णु के पास गए और उन्हे सारा वृतान्त सुनाया।
भगवान विष्णु ने उन्हे दैत्यों के साथ मिलकर क्षीरसागर का मंथन करके अमृत निकालने की सलाह दी। तब सभी देवताओं ने दैत्यों के साथ मिलकर अमृत निकालने के यत्न में जुट गए।
अमृत कलश के निकलते ही राक्षसों ने चाहा कि उसे पीकर अमर हो जाये और वे अमृत कलश को देवो से छीनने की कोशिश करने लगे। तब देवराज इन्द्र का पुत्र जयन्त इस कलश को लेकर भाग निकला।
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